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कविता

...और ईश्वर मर जाएगा

फ़िरोज़ ख़ान


ये भोर ठंडी है एकदम
जैसे कि ठंडा है
मेरा जिस्म
ठंडी चीजें मर जाती हैं
मैं भी मर जाऊँगा एक रोज

मेरे मरते ही मर जाएगा
ये शहर
ये वतन
ये दुनिया मर जाएगी मेरे मरते ही
स्मृतियाँ मर जाएँगी
मर जाएँगी मेरी प्रेमिकाएँ
मेरी माँ मर जाएगी
जिसके मरने का सताता रहा है डर
वो पिता मर जाएगा
मेरे मरते ही
वे सब मर जाएँगे
जिनके जीने की दुआएँ की थीं

मैं एक खंडहर हूँ
या कि हूँ एक ईश्वर
ढह जाऊँगा एक रोज मैं
मर जाऊँगा
मेरे मरते मर जाएगा
ईश्वर भी


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